Monday 2 March, 2009

ABHIVYAKTI by Amar pathik: अपनी ही उलझनों मैं उलझता हुआ मिला...

ABHIVYAKTI by Amar pathik: अपनी ही उलझनों मैं उलझता हुआ मिला...

1 comment:

  1. कविता को मारिए गोली अपनी नज़र तो नेहा के चेहरे से ही कहाँ हट रही है। इतनी खूबसूरत बिटिया वाह! हज़ारों कविताएं हज़ारों गज़लें क्या कहूँ इतनी प्यारी बच्ची के लिए... रतन सिंह हिमेश जी ने अपनी पोती के लिए एक ग़ज़ल लिखी थी उसकी दो लाईने इधर भी फिट बैठती है

    "आँखें उसकी मयखाना,
    लब उसके दो जाम अलग।

    निहारिका को मेरा स्नेहाशीष

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