Monday 2 March, 2009
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मन में उमड़-घुमड़ करते विचारों को कागज़ पर उतारना और फिर उनको अपने खास दोस्तों को जबरदस्ती परोसना बहुत आनन्द-दायी अनुभव है जिसे मैं पिछले कई वर्षों से निभा रहा हूँ । भाई प्रकाश बादल के आग्रह पर इंटरनेट पर और मित्र ढूंडनें निकला हूं ताकि विचारों का आदान-प्रदान हो और एक नये आनन्द की अनुभूति हो।
कविता को मारिए गोली अपनी नज़र तो नेहा के चेहरे से ही कहाँ हट रही है। इतनी खूबसूरत बिटिया वाह! हज़ारों कविताएं हज़ारों गज़लें क्या कहूँ इतनी प्यारी बच्ची के लिए... रतन सिंह हिमेश जी ने अपनी पोती के लिए एक ग़ज़ल लिखी थी उसकी दो लाईने इधर भी फिट बैठती है
ReplyDelete"आँखें उसकी मयखाना,
लब उसके दो जाम अलग।
निहारिका को मेरा स्नेहाशीष